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पाश्चात्य समाजशास्त्री - एक परिचय Sociology class 11 Book chapter 2 Western Sociologists - An Introduction pashchaty samajashastre - ek parichay notes

 

पाश्चात्य समाजशास्त्री - एक परिचय  notes


समाजशास्त्र के अभ्युदय में तीन क्रांतिकारी परिवर्तनों का महत्त्वपूर्ण हाथ है

1. ज्ञानोदय/ विज्ञान क्रांति

2. फ़्रांसिसी क्रांति 

3. औद्योगिक क्रांति  

  • इस प्रक्रिया ने केवल यूरोपीय समाज और यूरोप के संपर्क में आने के कारण पूरे विश्व को भी परिवर्तित किया।
  • कार्ल मार्क्स, एमिल दुर्खाइम तथा मैक्स वैबर ने  समाजशास्त्र की शास्त्रीय परंपरा के धारक के नाते इस विषय की नींव रखी।



1. ज्ञानोदय/ विज्ञान क्रांति 

  • ज्ञानोदय का विकास: 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध व 18वीं शताब्दी पश्चिमी यूरोप में संसार के बारे में सोचने-विचारने के बिलकुल नए व मौलिक दृष्टिकोण की शुरुआत मनुष्य को ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु माना विवेक को मनुष्य की मुख्य विशिष्टता एकल मानव अब 'व्यक्ति' बन गया मानव व्यक्ति को 'ज्ञान का पात्र' की उपाधि भी दी गई। 
  • केवल उन्हीं व्यक्तियों को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया जो विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार सकते थे। जो इस काबिल नहीं समझे गए उन्हें मानव का दर्जा नहीं दिया गया
  • मानव जगत की परिभाषा देने के लिए  प्रकृति, धर्म-संप्रदाय व देवी-देवताओं के महत्त्व को कम करना अनिवार्य कर दिया गया  था।
  • ज्ञानोदय को एक संभावना से यथार्थ में बदलने में उन वैचारिक प्रवृत्तियों का हाथ है जिन्हें हम 'धर्मनिरपेक्षता', 'वैज्ञानिक सोच' व 'मानवतावादी सोच' कहते हैं।



2. फ्रांसिसी क्रांति 1789

  • मानवाधिकार के घोषणपत्र ने सभी नागरिकों की समानता पर बल दिया तथा जन्मजात विशेषाधिकारों की वैधता पर प्रश्न उठाया।
  • व्यक्ति तथा राष्ट्र-राज्य के स्तर पर राजनीतिक संप्रभुता के आगमन की घोषणा की।
  • इसने व्यक्ति को धार्मिक तथा जमींदारी संस्थाओं के अत्याचारी शासन से मुक्त किया, जो फ्रांस की क्रांति के पहले वहाँ अपना वर्चस्व बनाए हुए थी।
  • किसानों को कुलीन वर्ग के चंगुल से आजाद करवाया गया।
  • करों को रद्द कर दिया गया जो किसान जागीरदारों तथा चर्च को दिया करते थे।
  • गणतंत्र के स्वतंत्र नागरिक होने के नाते प्रभुत्वसंपन्न व्यक्ति हकों व अधिकारों के धारक बने तथा उन्हें कानून और राजकीय संस्थाओं के समक्ष समानता का अधिकार भी प्राप्त हुआ।
  • राज्य को व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का सम्मान करना पड़ा और राजकीय कानून किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन में दखल नहीं दे सकते थे।
  • धर्म' तथा 'परिवार' का अधिकांश भाग व्यक्तिगत क्षेत्र के अनुकूल माना गया जबकि शिक्षा को अब सार्वजनिक क्षेत्र के लायक माना गया।
  • राष्ट-राज्य को नए सिरे से परिभाषित किया गया जिसके पास एक केंद्रीकृत शासन तंत्र हैं। 
  • फ्रांसिसी क्रांति के सिद्धांत-स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व-आधुनिक राज्य के नए नारे बने।



3. औद्योगिक क्रांति 

समय : 18वीं शताब्दी के अंत से 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक

स्थान : यूरोप और उत्तर अमेरिका । 

महत्व : एक ऐतिहासिक काल था जिसमे कृषि और हस्तशिल्प-आधारित अर्थव्यवस्थाओं से उद्योगीकरण और मशीन-नियंत्रित अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तित हो गयी।

महत्वपूर्ण परिवर्तन 

  • प्रौद्योगिकी उन्नतियाँ
  • शहरीकरण
  • आर्थिक परिवर्तन
  • सामाजिक प्रभाव
  • वैश्विक प्रभाव
  • पर्यावरणीय प्रभाव
  • सांस्कृतिक और बौद्धिक परिवर्तन

दो प्रमुख पहलू थे

1. विज्ञान तथा तकनीकी का प्रयोग

2. श्रम तथा बाजार का संगठित विकास 

  • वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर संपूर्ण विश्व के बाजारों के लिए किया जाने लगा। 
  • इन उत्पादों के निर्माण के लिए आवश्यक कच्चा माल भी दुनियाभर से प्राप्त किया जाने लगा। 
  • इस प्रकार बड़े पैमाने के आधुनिक उद्योग पूरी दुनिया में छा गए।
  • उद्योगों को चलाने के लिए मज़दूरों की माँग को उन विस्थापित लोगों ने पूरा किया जो ग्रामीण इलाकों को छोड़, शहर आकर बस गए थे। 
  • कम तनख्वाह मिलने के कारण अपनी जीविका चलाने के लिए पुरुषों और स्त्रियों को लंबे समय तक खतरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था।

परिवर्तन होने शुरुआत  

  • अब राज तंत्र को स्वास्थ्य, सफाई व्यवस्था, आपराधिक गतिविधियों व व्यवसायों पर नियंत्रण तथा सर्वांगीण विकास जैसे विषयों की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी। 
  • इन नयी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए नए प्रकार की जानकारी व ज्ञान की आवश्यकता महसूस हुई।
  • नए ज्ञान के लिए उभरती माँग ने समाजशास्त्र जैसी नयी विधाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई



कार्ल मार्क्स 

👉सामाजिक चिंतक और विश्लेषक

👉जन्म  5 मई, 1818 

👉स्थान जर्मनी के राइनलैंड नामक प्रांत में

👉 महत्वपूर्ण लेखन 

  • मैनिफेस्टो ऑफ द कम्युनिस्ट पार्टी
  • ए कॉन्ट्रीब्यूशन टू द क्रिटिक ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी
  • कैपिटल

👉महत्वपूर्ण काम 

  • अत्याचार तथा शोषण को खत्म करने की वकालत की।
  • वैज्ञानिक समाजवाद के द्वारा इस लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है।
  • पूँजीवादी समाज का आलोचनात्मक विश्लेषण कर उसकी कमजोरियों को उजागर किया



मार्क्स का यह कहना था कि समाज ने विभिन्न चरणों में उन्नति की है।


आदिम साम्यवाद
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दासता
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सामंतवादी व्यवस्था
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पूँजीवादी व्यवस्था
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नवीनतम चरण
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इसका स्थान समाजवाद ले लेगा।


पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति को पैदा करता है 

1. समाज में मनुष्य प्रकृति से अपने आपको काफी अलग-थलग पाता है।

2. पूँजीवाद ने सामाजिक व्यवस्था के सामूहिक रूप को व्यक्तिगत बना दिया है

3. कामकाजी व्यक्तियों का एक बड़ा समूह स्वयं अपनी मेहनत के फल से वंचित हैं

4. मजदूरों का कार्यप्रणाली पर कोई नियंत्रण नहीं है।

पूँजीवादी 

  • पूँजीवाद, मानव इतिहास में एक आवश्यक तथा प्रगतिशील चरण रहा क्योंकि इसने ऐसा वातावरण तैयार किया जो भविष्य में समान अधिकारों की वकालत करने तथा शोषण और गरीबी को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।
  • पूँजीवादी समाज में परिवर्तन सर्वहारा वर्ग द्वारा लाया जाएगा जो इसके शोषण के शिकार हैं
  • एक साथ मिलकर क्रांतिकारी परिवर्तन द्वारा इसे जड़ से समाप्त कर स्वतंत्रता तथा समानता पर आधारित समाजवादी समाज की स्थापना करेंगे।
  • मार्क्स ने पूंजीवाद को समझने के लिए इसके आर्थिक ढाँचे को समझने का प्रयास किया
  • अर्थव्यवस्था उत्पादन के साधनों पर निर्भर करती है 
  • समाज का आधार अर्थव्यवस्था है और उत्पादन के साधन  है 

1. उत्पादन की शक्तियाँ = उत्पादन के सभी साधन  

2. उत्पादन के सम्बन्ध = संसाधनों पर नियन्त्रण  



वर्ग संघर्ष 

  • व्यक्ति को सामाजिक समूहों में विभाजित करने का मुख्य तरीका धर्म, भाषा, राष्ट्रीयता अथवा समान पहचान के बजाए उत्पादन प्रक्रिया को मानते थे 
  • जो व्यक्ति एक जैसे पदों पर आसीन होते हैं. वे स्वतः ही एक वर्ग निर्मित करते हैं। 
  • उत्पादन प्रक्रिया में अपनी स्थिति के अनुसार तथा संपत्ति के संबंधों में, उनके एक जैसे हित तथा उद्देश्य होते हैं
  • जैसे जैसे उत्पादन के साधनों में परिवर्तन होते है वैसे ही वर्गों के बीच संघर्ष बढने लगता है 

उदाहरण

औद्योगिक क्रांति 

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सामन्तवादी व्यवस्था का विनाश

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लोग नौकरी की तलाश में शहरों की तरफ प्रवास करने लगे

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उद्योगों में काम करने लगे और एक वर्ग बना लिया जिसके समान हित थे

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उद्योगों में काम करने लगे और एक वर्ग बना लिया जिसके समान हित थे 



एमिल दुर्खेइम 

👉जन्म 15 अप्रैल 1858 

👉वह एक रूढ़िवादी यहूदी परिवार से थे।

👉उनके पिता और परदादा यहूदी पुजारी थे।

Founder of sociology 


👉 महत्वपूर्ण लेखन

The elementary forms of the religious life 

  • इसमें उन्होंने धर्म  के प्रति अपने विचारों को प्रकट किया था
  • धर्म के प्रति धर्मनिरपेक्ष विचारों को विकसित किया 


  • समाज एक सामाजिक तथ्य था जिसका अस्तित्व नैतिक समुदाय के रूप में व्यक्ति से ऊपर था। 
  • वे बंधन जो मनुष्य को समूहों के रूप में आपस में बाँधते थे, समाज के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण थे। 
  • ये बंधन अथवा सामाजिक एकता व्यक्ति पर दबाव डालते हैं ताकि वह समूह के मानदंडों तथा अपेक्षाओं के अनुरूप हो। 
  • ये व्यक्ति के व्यवहार प्रतिमानों को बाधित करते हैं तथा विविधताएँ एक छोटे दायरे में सिमट जाती हैं।


व्यवहारों को सीमित करने का मतलब 

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व्यवहार का पूर्वानुमान संभव है 

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व्यवहार के प्रतिरूपों को देखकर 

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मानदंड, सामाजिक एकता और संहिता को पहचाना जा सकता है 

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अमूर्त चीजों जैसे विचारों संस्कारों मूल्यों को सत्यापित किया जा सकता है 




श्रम का विभाजन 

Book-  Division Of Labor In Society 

सामाजिक एकता के आधार पर समाज का विभाजन

1. यांत्रिक एकता  

  • आदिम समाज
  • समाज में कम जनसंख्या  
  • व्यक्तिगत सम्बन्ध 
  • लोगो में समानता 
  • असमानता को दंडित किया जाता था 


2. सावयवी  एकता

  •  आधुनिक समाज 
  • समाज में अधिक जनसंख्या
  • अवैयक्ति सम्बन्ध 
  • लोगो में असमानता
  • व्यक्ति एक दुसरे पर आश्रित रहते है 
  • एक दुसरे के साथ अंतःक्रिया होती रहती है 




मैक्स बेवर 

👉जन्म 21 अप्रैल 1864  जर्मनी के एक परशियन परिवार में हुआ। इनके पिता एक मजिस्ट्रेट तथा राजनीतिज्ञ थे जो एक राजशाही बिस्मार्क के अनुयायी थे।

👉इनकी मृत्यु के पश्चात ही इनके अधिकतर लेखन कार्यों का प्रकाशन हुआ।

1. द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पीरिट ऑफ कैपिटलिज़्म

2. फ्रॉम मैक्स वैबर-ऐसेज इन सोशयोलॉजी

3. मैक्स वैबर ऑन द मेथोडोलॉजी ऑफ सोशल साइंसेज़

4. द रिलिजन ऑफ इंडिया

5. इकॉनामी एंड सोसायटी

 मैक्स वैबर के विचार 

  • सामाजिक विज्ञानों का पूर्ण उद्देश्य 'सामाजिक क्रिया की व्याख्यात्मक सोच' का विकास करना है। 
  • प्राकृतिक विज्ञान का उद्देश्य 'प्रकृति के नियमों' की खोज करना है जो इस भौतिक विश्व को संचालित करते हैं।
  • सामाजिक विज्ञान की पद्धतियाँ प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से भिन्न होंगी
  • सामाजिक क्रिया' में वे सब मानवीय व्यवहार सम्मिलित थे जो अर्थपूर्ण थे अर्थात् वे क्रियाएँ जिनसे कर्ता किसी अर्थ को संबंद्ध करता हो। 
  • सामाजिक क्रिया के अध्ययन में समाजशास्त्री का कार्य उन अर्थों को ढूँढ़ना था जो कर्ता द्वारा समझे जाते थे
  • समाजशास्त्री को स्वयं उस कर्ता के स्थान पर अपने आपको रखकर यह कल्पना करनी होती थी कि इनके अर्थ क्या हैं और क्या हो सकते थे।
  • समाजशास्त्र सुव्यवस्थित रूप से 'समानुभूति' अर्थात् ऐसी समझ जो 'अनुभूति' पर आधारित न हो बल्कि 'अनुभूति के साथ' हो। 
  • मूल्य तटस्था अपने विचारों को अपने पास रखकर दूसरों की भावनाओं को बताना 
  • आदर्श प्रारूप तार्किक रूप से दुसरे के विचारों को विश्लेषित करके उसके महत्व को बताना 



नौकरशाही

  • नौकरशाही प्रशासन की एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है जहाँ निर्णय निर्वाचित प्रतिनिधियों के बजाय राज्य के अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं। 
  • इसमें पदानुक्रमित संरचना शामिल होती है जहां कार्यों को विशेष विभागों के बीच विभाजित किया जाता है। 
  • नौकरशाही का लक्ष्य सरकारी गतिविधियों में दक्षता, स्थिरता और नियमों का पालन सुनिश्चित करना है।

नौकरशाही की विशेषताएं 

  • अधिकारियों के प्रकार्य
  • पदों का सोपानिक क्रम।
  • लिखित दस्तावेजों की विश्वसनीयता
  • कार्यालय का प्रबंधन।
  • कार्यालयी आचरण।



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